Sunday, 22 January 2012

Time - Waqt


सुन आसमान और ज़मीन तुझसे रंजिश नहीं
बस दिल कुछ उदास है आज
इस में तनहाईयाँ है बसी
हर जगह हर तरफ महसूस होती है कुछ कमीं

खालीपन के इस दायरे में बंध से गए हैं हम
साँसों की बंदिशें भी अब ना भाने लगी
आँखों से अब न थम रहे हैं आसूं -ऐ -सितम
आशाओं की किरणों की आहटें अब दूर से सताने लगी

आइना भी कुछ अजीब तसवीरें दिखाने लगा
परछाई भी अब मुह मोड़ दूर जाने लगी
अपने तो अपने थे ही कहाँ
दुश्मनों ने भी दुश्मनी निभाई नहीं

वक़्त के इस पहलु को हम देख दंग रह गए
वक़्त के इस खेल को देख मुस्कुराने लगे

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