सुन आसमान और ज़मीन तुझसे रंजिश नहीं
बस दिल कुछ उदास है आज
इस में तनहाईयाँ है बसी
हर जगह हर तरफ महसूस होती है कुछ कमीं
खालीपन के इस दायरे में बंध से गए हैं हम
साँसों की बंदिशें भी अब ना भाने लगी
आँखों से अब न थम रहे हैं आसूं -ऐ -सितम
आशाओं की किरणों की आहटें अब दूर से सताने लगी
आइना भी कुछ अजीब तसवीरें दिखाने लगा
परछाई भी अब मुह मोड़ दूर जाने लगी अपने तो अपने थे ही कहाँ
दुश्मनों ने भी दुश्मनी निभाई नहीं
वक़्त के इस पहलु को हम देख दंग रह गए
वक़्त के इस खेल को देख मुस्कुराने लगे

No comments:
Post a Comment